झालावाड़ हादसा: सरकारी स्कूलों की बदहाली का काला सच और सुधार की राह
लेखक: हरिशंकर पाराशर*
**झालावाड़, राजस्थान**: 26 जुलाई 2025 को राजस्थान के झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में एक सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय की छत गिरने की दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हादसे में सात मासूम बच्चों की जान चली गई और 28 अन्य घायल हो गए। यह त्रासदी केवल एक हादसा नहीं, बल्कि भारत में सरकारी स्कूलों की जर्जर स्थिति और प्रशासनिक लापरवाही का ज्वलंत उदाहरण है। यह लेख झालावाड़ हादसे के संदर्भ में सरकारी स्कूलों की स्थिति, इसके कारणों और सुधार के लिए आवश्यक कदमों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
### **हादसे का दर्दनाक विवरण और तात्कालिक प्रभाव*
इस हादसे ने स्थानीय समुदाय को दुख में डुबो दिया और पूरे देश में सरकारी स्कूलों की स्थिति पर बहस छेड़ दी। सोशल मीडिया पर #JhalawarTragedy और #RajasthanSchoolTragedy जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे, जहां लोग सरकार और प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल उठा रहे थे। *एबीपी न्यूज* के पत्रकार संदीप चौधरी ने अपने शो *सीधा सवाल* में इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार दिबांग ने सरकारी स्कूलों की बदहाली को "सिस्टम की विफलता" करार दिया।
### **सरकारी स्कूलों की बदहाली: एक राष्ट्रीय संकट**
झालावाड़ का हादसा कोई अकेली घटना नहीं है। यह भारत में सरकारी स्कूलों की जर्जर स्थिति का हिस्सा है। *यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) 2021-22* की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 15 लाख से अधिक स्कूल हैं, जिनमें से 10.32 लाख सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त हैं। इनमें से कई स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
- **जर्जर भवन**: UDISE+ 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक, 6,465 स्कूलों के पास कोई भवन नहीं है, और 35 स्कूलों के भवन पूरी तरह जर्जर हैं। इसके अलावा, 4,417 स्कूलों के भवन निर्माणाधीन हैं, जिसका मतलब है कि बच्चे असुरक्षित परिस्थितियों में पढ़ रहे हैं।
- **बुनियादी सुविधाओं की कमी**: केवल 77.34% सरकारी स्कूलों में कार्यशील बिजली कनेक्शन है, और 87.72% स्कूलों में इंटरनेट सुविधा नहीं है। 10% स्कूलों में हैंडवॉश की सुविधा तक नहीं है, जो स्वच्छता के लिए जरूरी है।
- **शिक्षक-छात्र अनुपात (PTR)**: राइट टू एजुकेशन (RTE) एक्ट, 2009 के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर PTR 30:1 और उच्च प्राथमिक स्तर पर 35:1 होना चाहिए। लेकिन *DISE* की रिपोर्ट के मुताबिक, 30% प्राथमिक और 15% उच्च प्राथमिक स्कूलों में यह अनुपात अधिक है।
- **शिक्षकों की कमी और गुणवत्ता**: देश में लगभग 1.2 लाख स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इसके अलावा, 95% शिक्षक प्रशिक्षण निजी संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाता है, जो अक्सर निम्न गुणवत्ता का होता है।
- **शिक्षण परिणामों में कमी**: *ASER 2022* की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में 75% तीसरी कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा के स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते। केवल 50% पांचवीं कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा का पाठ पढ़ सकते हैं, और केवल 29% बुनियादी विभाजन कर सकते हैं।
ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि सरकारी स्कूलों की स्थिति केवल भौतिक ढांचे तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षण की गुणवत्ता, शिक्षकों की कमी, और प्रशासनिक उदासीनता भी इस संकट को गहरा रही है।
-### **झालावाड़ हादसे के कारण: एक गहरा विश्लेषण**
झालावाड़ हादसे के पीछे कई कारण सामने आए हैं, जो सरकारी स्कूलों की व्यापक समस्याओं को दर्शाते हैं:
1. **प्रशासनिक लापरवाही**: स्कूल की जर्जर स्थिति के बारे में बार-बार शिकायतें की गई थीं, लेकिन शिक्षा विभाग और पंचायती राज विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। मरम्मत के लिए 1.94 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत थी, लेकिन विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण यह राशि उपयोग नहीं हो सकी।
2. **भ्रष्टाचार और फंड का दुरुपयोग**: स्थानीय लोगों का आरोप है कि स्कूल की मरम्मत के नाम पर केवल सतही काम किया गया, जैसे कि प्लास्टर, जो इमारत की मजबूती को और कमजोर करता है। यह भ्रष्टाचार का एक उदाहरण है, जहां फंड का सही उपयोग नहीं होता।
3. **उदासीनता और जवाबदेही की कमी**: शिक्षकों ने बच्चों की शिकायतों को नजरअंदाज किया, और अधिकारियों ने स्कूल भवनों का नियमित निरीक्षण नहीं किया। *ASER* और *UNESCO* की रिपोर्टें भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि सरकारी स्कूलों में जवाबदेही की कमी एक बड़ी समस्या है।
4. **अपर्याप्त बजट**: भारत शिक्षा पर जीडीपी का केवल 4% खर्च करता है, जिसमें से 2.5% निजी क्षेत्र से आता है। *NEP 2020* में 6% जीडीपी खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन यह अभी तक हासिल नहीं हुआ है।
5. **निजीकरण की ओर रुझान**: *UDISE+* डेटा के अनुसार, 2019-20 से 2021-22 तक सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा, लेकिन 2023-24 में 23 राज्यों में नामांकन में भारी गिरावट देखी गई। कई अभिभावक निजी स्कूलों को तरजीह दे रहे हैं, जिसके कारण सरकारी स्कूलों पर ध्यान कम हो रहा है।
---### **सामाजिक-आर्थिक प्रभाव**
सरकारी स्कूलों की खराब स्थिति का सबसे ज्यादा असर गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जैसे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अल्पसंख्यक समुदायों पर पड़ता है। ये समुदाय निजी स्कूलों की ऊंची फीस वहन नहीं कर सकते, इसलिए सरकारी स्कूल ही उनके बच्चों की शिक्षा का एकमात्र साधन हैं। झालावाड़ हादसे में मारे गए ज्यादातर बच्चे इन्हीं समुदायों से थे।
- **शिक्षा में असमानता**: *UDISE+ 2021-22* के अनुसार, निजी स्कूलों में नामांकन 2019-20 में 21 मिलियन से बढ़कर 2021-22 में 88.27 मिलियन हो गया। इससे शिक्षा में असमानता बढ़ रही है, क्योंकि निजी स्कूल बेहतर सुविधाएं और शिक्षण प्रदान करते हैं।
- **लड़कियों की शिक्षा पर प्रभाव**: *ASER 2020* की रिपोर्ट के अनुसार, अभिभावक लड़कों के लिए निजी स्कूलों को प्राथमिकता देते हैं, जबकि लड़कियों को सरकारी स्कूलों में भेजा जाता है। इससे लड़कियों की शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- **ड्रॉपआउट दर**: *UNICEF* की एक रिपोर्ट के अनुसार, 33% लड़कियां घरेलू काम के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। खराब स्कूल सुविधाएं और असुरक्षित वातावरण इस समस्या को और बढ़ाते हैं।
---सरकार की प्रतिक्रिया: कार्रवाई या दिखावा
झालावाड़ हादसे के बाद राजस्थान सरकार ने त्वरित कदम उठाए। पांच शिक्षकों और शिक्षा विभाग के पांच अधिकारियों को निलंबित किया गया, और एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्कूल भवनों का ऑडिट कराने और मरम्मत कार्य को तेज करने का वादा किया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी सभी जर्जर स्कूलों की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई।
हालांकि, कई लोग इसे महज दिखावा मानते हैं। विपक्षी नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि "सिस्टम को दोष देने की बजाय सरकार और मंत्रियों की जवाबदेही कब तय होगी?" पिछले कुछ वर्षों में समान हादसों के बाद भी ठोस सुधार नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान में 2000 से अधिक स्कूल जर्जर हालत में हैं, और 2024-25 के लिए स्कूल शिक्षा के बजट में 8.3% की कटौती की गई।
---सुधार की राह: दीर्घकालिक समाधान**
सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए निम्नलिखित उपाय जरूरी हैं:
1. **नियमित भवन निरीक्षण और मरम्मत**: सभी सरकारी स्कूलों का वार्षिक तकनीकी निरीक्षण अनिवार्य किया जाए। जर्जर भवनों की पहचान और उनकी त्वरित मरम्मत के लिए एक समर्पित टास्क फोर्स का गठन हो।
2. **पारदर्शी फंड उपयोग**: स्कूलों के रखरखाव के लिए आवंटित धनराशि का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित तकरने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया जाए, जहां फंड के आवंटन और खर्च का ब्योरा सार्वजनिक हो।
3. **शिक्षक प्रशिक्षण और जवाबदेही**: शिक्षकों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे बच्चों की शिकायतों को गंभीरता से लें और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर त्वरित कार्रवाई करें। साथ ही, शिक्षकों और अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए एक सख्त निगरानी तंत्र स्थापित हो।
4. **बजट में वृद्धि**: *NEP 2020* के अनुसार, शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने का लक्ष्य पूरा किया जाए। शिक्षा विभाग के बजट में कटौती को रोका जाए।
5. **डिजिटल और बुनियादी सुविधाएं**: ग्रामीण स्कूलों में बिजली, इंटरनेट, और स्वच्छता सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं। *DIKSHA* जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग बढ़ाया जाए।
6. **लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान**: लड़कियों के लिए अलग शौचालय, सुरक्षा, और परिवहन सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं ताकि ड्रॉपआउट दर कम हो।
7. **निजीकरण का नियमन**: निजी स्कूलों के नियमन के लिए एक मजबूत ढांचा बनाया जाए और सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के समकक्ष बनाने के लिए गुणवत्ता सुधार पर ध्यान दिया जाए।
8. **समुदाय की भागीदारी**: स्थानीय समुदायों और अभिभावकों को स्कूल प्रबंधन समितियों (SMCs) में सक्रिय रूप से शामिल किया जाए।
### **निष्कर्ष: एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी**
झालावाड़ का हादसा केवल एक स्थानीय त्रासदी नहीं, बल्कि भारत के सरकारी स्कूलों की बदहाली का प्रतीक है। यह हमें यह सवाल पूछने के लिए मजबूर करता है कि आखिर कब तक गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चे असुरक्षित स्कूलों में अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करेंगे? संदीप चौधरी ने अपने शो में सही कहा, "आम जनता के बच्चे स्कूलों में असुरक्षित क्यों हैं?"
शिक्षा न केवल एक मौलिक अधिकार है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक प्रगति का आधार भी है। अगर भारत को अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता का लाभ उठाना है, तो सरकारी स्कूलों को मजबूत करना होगा। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा। झालावाड़ के मासूम बच्चों की मौत को केवल एक आंकड़ा बनने से रोकने के लिए ठोस और त्वरित कार्रवाई जरूरी है।
**क्या सुधरेंगे हालात?** यह सवाल हर उस माता-पिता के मन में है, जो अपने बच्चे को सरकारी स्कूल भेजता है। अगर सरकार ने इस बार सबक नहीं लिया, तो भविष्य में ऐसे हादसे फिर होंगे, और मासूम बच्चों की जान जोखिम में रहेगी। यह समय केवल वादों का नहीं, बल्कि कार्रवाई का है।
*© कॉपीराइट: यह लेख मूल रूप से हरिशंकर पाराशर द्वारा लिखा गया है। बिना अनुमति के इसकी नकल या पुन: प्रकाशन निषिद्ध है।*
*प्रकाशन हेतु प्रेषित: यह लेख समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए उपयुक्त है और इसे संबंधित संपादकीय टीम को भेजा जा सकता है।*
जनता की आवाज न्यूज से ब्यूरो
चीफ शैलेंद्र तिवारी की रिपोर्ट




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